सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक बनी बैलाडीला की हेरा पंचमी परंपरा, धूम धाम से निकली यात्रा, श्रृद्वालुओं का उमड़ा सैलाब
भगवान जगन्नाथ की विश्वविख्यात रथ यात्रा के अंतर्गत मनाई जाने वाली हेरा पंचमी की अनूठी परंपरा इस वर्ष भी बैलाडीला की लौहनगरी में पूरे श्रद्धा और धार्मिक विधिविधान के साथ संपन्न हुई।

आजाद सक्सेना
बैलाडीला, दंतेवाड़ा। भगवान जगन्नाथ की विश्वविख्यात रथ यात्रा के अंतर्गत मनाई जाने वाली हेरा पंचमी की अनूठी परंपरा इस वर्ष भी बैलाडीला की लौहनगरी में पूरे श्रद्धा और धार्मिक विधिविधान के साथ संपन्न हुई। आयोजन का नेतृत्व जगन्नाथ सेवा समिति बैलाडीला ने किया। यह उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि सांस्कृतिक एकता और समरसता का भी अनुपम उदाहरण बना।
वीडियो देखें :-
पौराणिक कथा पर आधारित है परंपरा
हेरा पंचमी से जुड़ी परंपरा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ जब बिना सूचना दिए अपनी पत्नी माता लक्ष्मी को छोड़कर भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा संग मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) जाते हैं, तो माता लक्ष्मी क्रोधित हो जाती हैं। पांच दिनों तक भगवान न लौटने पर वे उन्हें ढूंढ़ते हुए निकलती हैं और वहां आनंद में मग्न देखकर उनका रथ तोड़ देती हैं। इसके बाद माता लक्ष्मी श्रीधाम लौट जाती हैं। जब भगवान वापस लौटते हैं (इस वर्ष 5 जुलाई को बहूड़ा यात्रा के दिन), तब माता लक्ष्मी मंदिर के कपाट बंद कर देती हैं और भगवान को रातभर बाहर रहना पड़ता है। अगले दिन दोनों पक्षों के लोग बीच-बचाव करते हैं और तब जाकर भगवान को मंदिर में प्रवेश मिलता है।
मिनी इंडिया में बसी आस्था की झलक
बैलाडीला को ‘मिनी इंडिया’ कहा जाता है, क्योंकि यहाँ एनएमडीसी में कार्यरत विभिन्न राज्यों के लोग रहते हैं। वे न केवल अपनी-अपनी परंपराओं को जीवित रखते हैं, बल्कि एक-दूसरे के त्योहारों में भी पूरे उत्साह से भाग लेते हैं। हेरा पंचमी का आयोजन भी इसी सांस्कृतिक मेल-जोल और एकता का परिचायक है। आयोजन के दौरान भजन, कीर्तन और पारंपरिक रीति-रिवाजों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।
उत्सव से उपजा सौहार्द
इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत की विविधता में भी एकता कितनी मजबूत है। हर समुदाय ने इस पर्व को अपने पर्व जैसा अपनाया और एकसाथ मिलकर आयोजन को सफल बनाया। इस तरह के आयोजन सामाजिक सौहार्द, सांस्कृतिक जागरूकता और परंपराओं की निरंतरता को बनाए रखते हैं।