बस्तर में भव्य रूप से निकली बंजारी माता की जात्रा, दिखी संस्कृति और आस्था की अनूठी छवि

बास्तेनार घाट स्थित बंजारी माता मंदिर से पारंपरिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर भव्य जात्रा निकाली गई।

बस्तर में भव्य रूप से निकली बंजारी माता की जात्रा, दिखी संस्कृति और आस्था की अनूठी छवि

आजाद सक्सेना

छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल की पहचान उसकी समृद्ध आदिवासी संस्कृति, परंपराओं और प्रकृति से जुड़ी जीवनशैली से है। यहां के आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक जड़ें इतनी मजबूत हैं कि समय के बदलाव के बावजूद इनकी परंपराएं आज भी पूरी निष्ठा और गर्व के साथ निभाई जाती हैं। इन्हीं परंपराओं का जीवंत उदाहरण है मड़ई मेलाऔर जात्रा’, जो न सिर्फ धार्मिक आयोजन होते हैं, बल्कि सामाजिक एकता, लोककलाओं और सामूहिक जीवन के प्रतीक भी हैं।

हर वर्ष निकलती है जात्रा

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बास्तेनार घाट स्थित बंजारी माता मंदिर से पारंपरिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर भव्य जात्रा निकाली गई। इस एक दिवसीय जात्रा में बास्तेनार गांव सहित आसपास के पांच गांवों के हजारों लोग शामिल हुए। हर गांव से अपने ग्राम देवताओं के साथ पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार लोग जात्रा में पहुंचे। यह आयोजन न केवल श्रद्धा और भक्ति का पर्व था, बल्कि आदिवासी संस्कृति की विविधता और जीवंतता की सुंदर प्रस्तुति भी थी।

वीडियो देखे :-

बंजारी माता मंदिर से हुई शुरूआत

जात्रा की शुरुआत बंजारी माता मंदिर परिसर से हुई, जहां स्थानीय पुजारियों द्वारा विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद देवी-देवताओं की डोलियां, निशान और प्रतीक चिह्नों को लेकर श्रद्धालु ढोल-नगाड़ों की थाप और पारंपरिक गीतों की धुन पर नाचते-गाते यात्रा में शामिल हुए। बच्चे, युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सभी पारंपरिक वस्त्रों और गहनों से सजे-धजे नजर आए। ढोल, मांदर, नगाड़ा और तुरही जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज ने पूरे वातावरण को भक्ति और उत्साह से भर दिया।

हर जगह हुआ स्वागत

बंजारी माता की जात्रा पूरे बास्तेनार गांव में भ्रमण करते हुए अनेक पड़ावों से गुजरी। हर पड़ाव पर ग्रामीणों ने पुष्पवर्षा और पारंपरिक नृत्य-गान के माध्यम से देवी का स्वागत किया। जात्रा के दौरान भक्ति गीतों और परंपरागत नृत्य रूपों का जीवंत प्रदर्शन हुआ, जिसमें युवाओं और बच्चों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। आदिवासी संस्कृति से जुड़े गीतों और नृत्य शैलियों ने उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

सामाजिक समागम भी

यह आयोजन केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं था, बल्कि एक सामाजिक समागम भी था, जिसमें गांवों के बीच आपसी मेलजोल और सामुदायिक भावना का स्पष्ट प्रदर्शन देखने को मिला। जात्रा के माध्यम से युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़ने का अवसर मिला। वहीं बुजुर्गों ने परंपरा की निरंतरता को देखकर संतोष और गर्व की अनुभूति की।

भोग और प्रसाद का वितरण

जात्रा के समापन पर श्रद्धालुओं ने माता के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद पारंपरिक भोग और प्रसाद का वितरण किया गया, जिसमें सभी गांवों के लोगों ने साथ बैठकर भोजन किया। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि सामाजिक सौहार्द और सामूहिकता की मिसाल भी बन गया।

जात्रा सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी हुई

बंजारी माता की जात्रा ने एक बार फिर सिद्ध किया कि बस्तर की आत्मा आज भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी हुई है। यहां परंपरा, भक्ति और लोकसंस्कृति केवल पुस्तकों या स्मृतियों में नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में जीवंत रूप से बहती है। जात्रा जैसे आयोजन इस बात का प्रमाण हैं कि बस्तर का आदिवासी समाज अपनी विरासत को न केवल संजोए हुए है, बल्कि उसे अगली पीढ़ियों तक गर्वपूर्वक पहुंचा रहा है।